Aurat Ka Safar
औरत का सफर:
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बाबुल का घर छोड़ कर
पिया के घर आती है,
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एक लड़की जब शादी कर
औरत बन जाती है,
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अपनों से नाता तोड़कर
किसी गैर को अपनाती है,
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अपनी ख्वाहिशों को जलाकर
किसी और के सपने सजाती है,
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सुबह सवेरे जागकर
सबके लिए चाय बनाती है,
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नहा धोकर फिर
सबके लिए नाश्ता बनाती है,
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पति को विदा कर
बच्चों का टिफिन सजाती है,
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झाडू पोछा निपटा कर
कपड़ों पर जुट जाती है,
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पता ही नही चलता
कब सुबह से दोपहर हो जाती है,
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फिर से सबका खाना बनाने
किचन में जुट जाती है,
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सास ससुर को खाना परोस
स्कूल से बच्चों को लाती है,
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बच्चों संग हंसते हंसते
खाना खाती और खिलाती है,
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फिर बच्चों को टयूशन छोड़
थैला थाम बाजार जाती है,
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घर के अनगिनत काम
कुछ देर में निपटाकर आती है,
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पता ही नही चलता
कब दोपहर से शाम हो जाती है,
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सास ससुर की चाय बनाकर
फिर से चौके में जुट जाती है,
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खाना पीना निपटाकर
फिर बर्तनों पर जुट जाती है,
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थकी हारी फिर पति को
खुश करने का फर्ज़ निभाती है,
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सबको सुलाकर सुबह उठने को
फिर से वो सो जाती है,
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पता नही कितनी बार
छोटे बच्चों के साथ सोते सोते जग जाती है,
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हैरान हूं ये देखकर कि वो
कितने घंटे ड्यूटी बजाती है,
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फिर भी एक पैसे की
तन्ख्वाह नही पाती है,
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ना जाने क्यूं दुनिया
उस औरत का मज़ाक उडाती है,
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ना जाने क्यूं दुनिया
उस औरत पर चुटकुले बनाती है,
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जो पत्नी मां बहन बेटी
ना जाने कितने रिश्ते निभाती है,
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सबके आंसू पोंछती है
लेकिन खुद के आंसू छुपाती है,
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दुल्हन बनकर आती है
और कफन पहनकर जाती है।
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